The Basic Principles Of shiv chalisa lyricsl
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पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
Whosoever presents incense, prasad and performs arti to Lord Shiva, with really like and devotion, enjoys material pleasure and spiritual bliss in this environment and hereafter ascends on the abode of Lord Shiva. The poet prays that Lord Shiva taken off the struggling of all and grants them eternal bliss.
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
अर्थ: हे प्रभु वैसे तो जगत के नातों में माता-पिता, भाई-बंधु, नाते-रिश्तेदार सब होते हैं, लेकिन विपदा पड़ने पर कोई भी साथ नहीं देता। हे स्वामी, बस आपकी ही आस है, आकर मेरे संकटों को हर लो। आपने सदा निर्धन को धन दिया है, जिसने जैसा फल चाहा, आपकी भक्ति से वैसा फल प्राप्त किया है। हम आपकी स्तुति, आपकी प्रार्थना किस विधि से करें अर्थात हम अज्ञानी है प्रभु, अगर आपकी पूजा करने में कोई shiv chalisa lyricsl चूक हुई हो तो हे स्वामी, हमें क्षमा कर देना।
मंत्र महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् - अयि गिरिनन्दिनि
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥
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स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥ तुरत षडानन आप पठायउ ।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥ शंकर हो संकट के नाशन ।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥